The following are the English and Hindi translations of Shri Hanuman Chalisa Lyrics. You can also read the Hanuman chalisa alone. To read, click on the link.
श्री हनुमान चालीसा लिरिक्स के अंग्रेजी और हिन्दी अनुवाद निम्न लिखित हैं। सटीक हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
Shri Hanuman Chalisa Lyrics (English / Hindi)
Hanuman Chalisa Meaning in Hindi
Hanuman Chalisa Hindi mein arth sahit niche di gayi hai.
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
भावार्थ – श्री गुरुदेव के चरण–कमलों की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को निर्मल करके मैं श्री रघुवर के उस सुन्दर यश का वर्णन करता हूँ जो चारों फल (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) को प्रदान करने वाला है।
व्याख्या – मनरूपी दर्पण में शब्द–स्पर्श–रूप–रस–गन्धरूपी विषयों की पाँच पतवाली जो काई (मैल) चढ़ी हुई है वह साधारण रज से साफ होने वाली नहीं है। अतः इसे स्वच्छ करने के लिये ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज’ की आवश्यकता पड़ती है। साक्षात् भगवान् शंकर ही यहाँ गुरु–स्वरूप में वर्णित हैं–‘गुरुं शङ्कररूपिणम् ।‘ भगवान् शंकर की कृपा से ही रघुवर के सुयश का वर्णन करना सम्भव है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार ।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥
भावार्थ – हे पवनकुमार! मैं अपने को शरीर और बुद्धि से हीन जानकर आपका स्मरण (ध्यान) कर रहा हूँ। आप मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करके मेरे समस्त कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा कीजिये।
व्याख्या – मैं अपने को देही न मानकर देह मान बैठा हूँ, इस कारण बुद्धिहीन हूँ और पाँचों प्रकार के क्लेश (अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश) तथा षड्विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर) से संतप्त हूँ; अतः आप जैसे सामर्थ्यवान् ‘अतुलितबलधामम्‘ ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम्‘ से बल, बुद्धि एवं विद्या की याचना करता हूँ तथा समस्त क्लेशों एवं विकारों से मुक्ति पाना चाहता हूँ।
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥1॥
भावार्थ – ज्ञान और गुणों के सागर श्री हनुमान जी की जय हो। तीनों लोकों (स्वर्गलोक, भूलोक, पाताललोक) को अपनी कीर्ति से प्रकाशित करने वाले कपीश्वर श्री हनुमान जी की जय हो।
व्याख्या – श्री हनुमान जी कपिरूप में साक्षात् शिव के अवतार हैं, इसलिये यहाँ इन्हें कपीश कहा गया।
यहाँ हनुमान जी के स्वरूप की तुलना सागर से की गयी। सागर की दो विशेषताएँ हैं – एक तो सागर से भण्डार का तात्पर्य है और दूसरा सभी वस्तुओं की उसमें परिसमाप्ति होती है। श्री हनुमन्तलाल जी भी ज्ञान के भण्डार हैं और इनमें समस्त गुण समाहित हैं। किसी विशिष्ट व्यक्ति का ही जय–जयकार किया जाता है। श्री हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य, सकल गुणों के निधान तथा तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं, अतः यहाँ उनका जय–जयकार किया गया है।
रामदूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि–पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥
भावार्थ – हे अतुलित बल के भण्डार घर रामदूत हनुमान जी! आप लोक में अंजनी पुत्र और पवनसुत के नाम से विख्यात हैं।
व्याख्या – सामान्यतः जब किसी से कोई कार्य सिद्ध करना हो तो उसके सुपरिचित, इष्ट अथवा पूज्य का नाम लेकर उससे मिलने पर कार्य की सिद्धि होने में देर नहीं लगती। अतः यहाँ श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये भगवान श्री राम, माता अंजनी तथा पिता पवनदेव का नाम लिया गया।
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
भावार्थ – हे महावीर! आप वज्र के समान अंगवाले और अनन्त पराक्रमी हैं। आप कुमति (दुर्बुद्धि) का निवारण करने वाले हैं तथा सद्बुद्धि धारण करने वालों के संगी (साथी, सहायक) हैं।
व्याख्या – किसी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये सर्वप्रथम उसके गुणों का वर्णन करना चाहिये। अतः यहाँ हनुमान जी के गुणों का वर्णन है। श्री हनुमन्तलाल जी त्याग, दया, विद्या, दान तथा युद्ध – इन पाँच प्रकार के वीरतापूर्ण कार्यों में विशिष्ट स्थान रखते हैं, इस कारण ये महावीर हैं। अत्यन्त पराक्रमी और अजेय होने के कारण आप विक्रम और बजरंगी हैं। प्राणिमात्र के परम हितैषी होने के कारण उन्हें विपत्ति से बचाने के लिये उनकी कुमति को दूर करते हैं तथा जो सुमति हैं, उनके आप सहायक हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥4॥
भावार्थ—आपके स्वर्ण के समान कान्तिमान् अंगपर सुन्दर वेश–भूषा, कानों में कुण्डल और घुँघराले केश सुशोभित हो रहे हैं।
व्याख्या—इस चौपाई में श्री हनुमन्तलाल जी के सुन्दर स्वरूप का वर्णन हुआ है। आपकी देह स्वर्ण–शैल की आभा के सदृश सुन्दर है और कान में कुण्डल सुशोभित है। उपर्युक्त दोनों वस्तुओं से तथा घुँघराले बालों से आप अत्यन्त सुन्दर लगते हैं।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥
भावार्थ – आपके हाथ में वज्र (वज्र के समान कठोर गदा) और (धर्म का प्रतीक) ध्वजा विराजमान है तथा कंधे पर मूँज का जनेऊ सुशोभित है।
व्याख्या – सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार वज्र एवं ध्वजा का चिह्न सर्वसमर्थ महानुभाव एवं सर्वत्र विजय श्री प्राप्त करने वाले के हाथ में होता है और कन्धे पर मूँज का जनेऊ नैष्ठिक ब्रह्मचारी का लक्षण है। श्री हनुमान जी इन सभी लक्षणों से सम्पन्न हैं।
संकर सुवन केसरीनंदन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥6॥
भावार्थ– आप भगवान् शंकर के अंश (अवतार) और केशरी पुत्र के नाम से विख्यात हैं। आप (अतिशय) तेजस्वी, महान् प्रतापी और समस्त जगत्के वन्दनीय हैं।
व्याख्या – प्राणिमात्र के लिये तेज की उपासना सर्वोत्कृष्ट है। तेज से ही जीवन है। अन्तकाल में देहाकाश से तेज ही निकलकर महाकाश में विलीन हो जाता है।
विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7॥
भावार्थ – आप सारी विद्याओं से सम्पन्न, गुणवान् और अत्यन्त चतुर हैं। आप भगवान् श्री राम का कार्य (संसार के कल्याण का कार्य) पूर्ण करनेके लिये तत्पर (उत्सुक) रहते हैं।
व्याख्या — श्री हनुमन्तलाल जी समग्र विद्याओं में निष्णात हैं और समस्त गुणों को धारण करने से ‘सकल–गुण–निधान’ हैं। वे श्री राम के कार्य सम्पादन हेतु अत्यन्त आतुरता (तत्परता, व्याकुलता) का भाव रखने वाले हैं। क्योंकि ‘राम काज लगि तव अवतारा’ यही उद्घोषित करता है कि श्री हनुमान जी के जन्म का मूल हेतु मात्र भगवान् श्री राम के हित कार्यों का सम्पादन ही है।
ब्रह्मकी दो शक्तियाँ हैं — पहली स्थित्यात्मक और दूसरी गत्यात्मक। श्री हनुमन्तलाल जी गत्यात्मक क्रिया शक्ति हैं अर्थात् निरन्तर रामकाज में संनद्ध रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥8॥
भावार्थ – आप प्रभु श्री राघवेन्द्र का चरित्र (उनकी पवित्र मंगलमयी कथा) सुनने के लिये सदा लालायित और उत्सुक (कथारस के आनन्द में निमग्न) रहते हैं। श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता जी सदा आपके हृदय में विराजमान रहते हैं।
व्याख्या – ‘राम लखन सीता मन बसिया’– इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि भगवान् श्री राम, श्री लक्ष्मण जी एवं भगवती सीता जी के हृदय में आप बसते हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥
भावार्थ– आपने अत्यन्त लघु रूप धारण कर के माता सीता जी को दिखाया और अत्यन्त विकराल रूप धारण कर लंका नगरी को जलाया।
व्याख्या – श्री हनुमान जी अष्ट–सिद्धियों से सम्पन्न हैं। उनमें सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं अति विस्तीर्ण दोनों रूपों को धारण करने की विशेष क्षमता विद्यमान है। वे शिव (ब्रह्म) का अंश होने के कारण तथा अत्यन्त सूक्ष्म रूप धारण करने से अविज्ञेय भी हैं ‘सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयम्‘ साथ ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार, दम्भ आदि भयावह एवं विकराल दुर्गुणों से युक्त लंका को विशेष पराक्रम एवं विकट रूप से ही भस्मसात् किया जाना सम्भव था। अतः श्री हनुमान जी ने दूसरी परिस्थिति में विराट् रूप धारण किया।
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचंद्र के काज सँवारे ॥10॥
भावार्थ – आपने अत्यन्त विशाल और भयानक रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और विविध प्रकार से भगवान् श्री रामचन्द्रजीं के कार्यों को पूरा किया।
व्याख्या – श्री हनुमान जी परब्रह्म राम की क्रिया शक्ति हैं। अतः उसी शक्ति के द्वारा उन्होंने भयंकर रूप धारण करके असुरों का संहार किया। भगवान् श्री राम के कार्य में लेश मात्र भी अपूर्णता श्री हनुमान जी के लिये सहनीय नहीं थी तभी तो ‘राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम‘ का भाव अपने हृदय में सतत सँजोये हुए वे प्रभु श्री राम के कार्य सँवारने में सदा क्रिया शील रहते थे।
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥
भावार्थ– आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया। इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान् श्री राम ने आपको हृदय से लगा लिया।
व्याख्या – श्री हनुमान जी को उनकी स्तुति में श्री लक्ष्मण–प्राणदाता भी कहा गया है। श्री सुषेण वैद्य के परामर्श के अनुसार आप द्रोणाचल पर्वत पर गये, अनेक व्यवधानों एवं कष्टों के बाद भी समय के भीतर ही संजीवनी बूटी लाकर श्री लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा की। विशेष स्नेह और प्रसन्नता के कारण ही किसी को हृदय से लगाया जाता है। अंश की पूर्ण परिणति अंशी से मिलने पर ही होती है, जिसे श्री हनुमन्तलाल जी ने चरितार्थ किया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥12॥
भावार्थ – भगवान् श्री राघवेन्द्र ने आपकी बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि तुम भाई भरत के समान ही मेरे प्रिय हो ।
व्याख्या – श्री रामचन्द्र जी ने हनुमान जी के प्रति अपनी प्रियता की तुलना भरत के प्रति अपनी प्रीति से करके हनुमान जी को विशेष रूप से महिमा–मण्डित किया है। भरत के समान राम का प्रिय कोई नहीं है, क्योंकि समस्त जगतद्वारा आराधित श्री राम स्वयं भरत का जप करते हैं
भरत सरिस को राम सनेही ।
जगु जप राम रामु जप जेही ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥13॥
भावार्थ – हजार मुख वाले श्री शेष जी सदा तुम्हारे यश का गान करते रहेंगे ऐसा कहकर लक्ष्मी पति विष्णु स्वरूप भगवान् श्री राम ने आपको अपने हृदयसे लगा लिया।
व्याख्या – श्री हनुमान जी की चतुर्दिक प्रशंसा हजारों मुखों से होती रहे ऐसा कहते हुए भगवान् श्री राम जी ने श्री हनुमान जी को कण्ठ से लगा लिया।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥15॥
भावार्थ – श्री सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार आदि मुनिगण, ब्रह्मा आदि देवगण, नारद, सरस्वती, शेषनाग, यमराज, कुबेर तथा समस्त दिक्पाल भी जब आपका यश कहने में असमर्थ हैं तो फिर (सांसारिक) विद्वान् तथा कवि उसे कैसे कह सकते हैं? अर्थात् आपका यश अवर्णनीय है।
व्याख्या – उपमा के द्वारा किसी वस्तु का आंशिक ज्ञान हो सकता है, पूर्ण ज्ञान नहीं। कवि–कोविद उपमा का ही आश्रय लिया करते हैं।
श्री हनुमान जी की महिमा अनिर्वचनीय है। अतः वाणी के द्वारा उसका वर्णन करना सम्भव नहीं।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥16॥
भावार्थ – आपने वानर राज सुग्रीव का महान् उपकार किया तथा उन्हें भगवान् श्री राम से मिलाकर [बालि वध के उपरान्त] राजपद प्राप्त करा दिया।
व्याख्या– राजपद पर सुकण्ठ की ही स्थिति है और उसका ही कण्ठ सुकण्ठ है जिसके कण्ठपर सदैव श्री राम–नाम का वास हो। यह कार्य श्री हनुमान जी की कृपा से ही सम्भव है।
सुग्रीव बालि के भय से व्याकुल रहता था और उसका सर्वस्व हरण कर लिया गया था। भगवान् श्री राम ने उसका गया हुआ राज्य वापस दिलवा दिया तथा उसे भय–रहित कर दिया। श्री हनुमान जी ने ही सुग्रीव की मित्रता भगवान् राम से करायी।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥
भावार्थ – आपके परम मन्त्र (परामर्श) को विभीषण ने ग्रहण किया। इसके कारण वे लंका के राजा बन गये। इस बात को सारा संसार जानता है।
व्याख्या – श्री हनुमान जी महाराज ने श्री विभीषण जी को शरणागत होने का मन्त्र दिया था, जिसके फलस्वरूप वे लंका के राजा हो गये।
जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥18॥
भावार्थ – हे हनुमान जी! [जन्म के समय ही] आपने दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को [कोई] मीठा फल समझकर निगल लिया था।
व्याख्या – श्री हनुमान जी को जन्म से ही आठों सिद्धियाँ प्राप्त थीं। वे जितना ऊँचा चाहें उड़ सकते थे, जितना छोटा या बड़ा शरीर बनाना चाहें बना सकते थे तथा मनुष्य रूप अथवा वानर रूप धारण करने की उनमें क्षमता थी।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥19॥
भावार्थ – आप अपने स्वामी श्री रामचन्द्र जी की मुद्रिका [अँगूठी] को मुख में रखकर [सौ योजन विस्तृत] महासमुद्र को लाँघ गये थे। [आपकी अपार महिमा को देखते हुए] इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।
व्याख्या – श्री हनुमान जी महाराज को समस्त सिद्धियाँ प्राप्त हैं तथा उनके हृदय में प्रभु विराजमान हैं, इसलिये समस्त शक्तियाँ भी आपके साथ रहेंगी ही। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20॥
भावार्थ – हे महाप्रभु हनुमान जी! संसार के जितने भी कठिन कार्य हैं वे सब आपकी कृपामात्र से सरल हो जाते हैं।
व्याख्या – संसार में रहकर मोक्ष (जन्म–मरण के बन्धन से मुक्ति) प्राप्त करना ही दुर्गम कार्य है, जो आपकी कृपा से सुलभ है।
आपका अनुग्रह न होने पर सुगम कार्य भी दुर्गम प्रतीत होता है, परंतु सरल साधन से जीव पर श्री हनुमान जी की कृपा शीघ्र हो जाती है।
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥
भावार्थ – भगवान् श्री रामचन्द्र जी के द्वार के रखवाले (द्वारपाल) आप ही हैं। आपकी आज्ञा के बिना उनके दरबार में किसी का प्रवेश नहीं हो सकता (अर्थात् भगवान् राम की कृपा और भक्ति प्राप्त करने के लिये आपकी कृपा बहुत आवश्यक है) ।
व्याख्या – संसार में मनुष्य के लिये चार पुरुषार्थ हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। भगवान के दरबार में बड़ी भीड़ न हो इसके लिये भक्तों के तीन पुरुषार्थ को हनुमान जी द्वार पर ही पूरा कर देते हैं। अन्तिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति के अधिकारी श्री हनुमन्तलाल जी की अनुमति से भगवान के सान्निध्य पाते हैं।
मुक्ति के चार प्रकार हैं – सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य एवं सायुज्य। यहाँ प्रायः सालोक्य मुक्ति से अभिप्राय है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डर ना ॥22॥
भावार्थ – आपकी शरण में आये हुए भक्त को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। आप जिस के रक्षक हैं उसे किसी भी व्यक्ति या वस्तु का भय नहीं रहता है।
व्याख्या – श्री हनुमान जी महाराज की शरण लेने पर सभी प्रकार के दैहिक, दैविक, भौतिक भय समाप्त हो जाते हैं तथा तीनों प्रकार के आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक सुख सुलभ हो जाते हैं।
आप सुखनिधान हैं तथा सभी सुख आपकी कृपा से सुलभ हैं। यहाँ सभी सुख का तात्पर्य आत्यन्तिक सुख तथा परम सुख से है। परमात्म प्रभु की शरण में जाने पर सदैव के लिये दुःखों से छुटकारा मिल जाता है तथा शाश्वत शान्ति प्राप्त होती है।
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हांक तें कांपै ॥23॥
भावार्थ – अपने तेज [शक्ति, पराक्रम, प्रभाव, पौरुष और बल] – के वेग को स्वयं आप ही सँभाल सकते हैं। आपके एक हुंकारमात्र से तीनों लोक काँप उठते हैं।
व्याख्या – देवता, दानव और मनुष्य तीनों ही आपके तेज को सहन करने में असमर्थ हैं। आपकी भयंकर गर्जना से तीनों लोक काँपने लगते हैं।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥24॥
भावार्थ – भूत–पिशाच आदि आपका ‘महावीर’ नाम सुनते ही (नामोच्चारण करने वाले के) समीप नहीं आते हैं।
व्याख्या — श्री हनुमान जी का नाम लेनेमात्र से भूत–पिशाच भाग जाते हैं तथा भूत–प्रेत आदि की बाधा मनुष्य के पास भी नहीं आ सकती। श्री हनुमान जी का नाम लेते ही सारे भय दूर हो जाते हैं।
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
भावार्थ – वीर हनुमान जी का निरन्तर जप करने से वे रोगों का नाश करते हैं तथा सभी पीड़ाओं का हरण करते हैं।
व्याख्या – रोग के नाश के लिये बहुत से साधन एवं औषधियाँ हैं। यहाँ रोग का मुख्य तात्पर्य भवरोग से तथा पीड़ा का तीनों तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) से है जिसका शमन श्री हनुमान जी के स्मरण मात्र से होता है। श्री हनुमान जी के स्मरण से निरोगता तथा निर्द्वन्द्वता प्राप्त होती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥26॥
भावार्थ – हे हनुमान जी ! यदि कोई मन, कर्म और वाणीद्वारा आपका (सच्चे हृदय से) ध्यान करे तो निश्चय ही आप उसे सारे संकटों से छुटकारा दिला देते हैं।
व्याख्या – जो मन से सोचते हैं वही वाणी से बोलते हैं तथा वही कर्म करते हैं ऐसे महात्मागण को हनुमान जी संकट से छुड़ाते हैं। जो मन में कुछ सोचते हैं, वाणी से कुछ दूसरी बात बोलते हैं तथा कर्म कुछ और करते हैं, वे दुरात्मा हैं। वे संकट से नहीं छूटते।
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥27॥
भावार्थ – तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं। [ऐसे सर्वसमर्थ] प्रभु के समस्त कार्यों को आपने ही पूरा किया।
व्याख्या– ‘पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू‘ के अनुसार श्री रामचन्द्र जी वन के राजा हैं और मुनिवेश में हैं। वन में श्री हनुमान जी ही राम के निकटतम अनुचर हैं। इस कारण समस्त कार्यों को सुन्दर ढंग से सम्पादन करने का श्रेय उन्हीं को है।
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥28॥
भावार्थ — हे हनुमान जी ! आपके पास कोई किसी प्रकार का भी मनोरथ [ धन, पुत्र, यश आदि की कामना] लेकर आता है, (उसकी) वह कामना पूरी होती है। इसके साथ ही ‘अमित जीवन फल’ अर्थात् भक्ति भी उसे प्राप्त होती है।
व्याख्या — गोस्वामी श्री तुलसीदास जी की ‘कवितावली’ में ‘अमित जीवन फल’ का वर्णन इस प्रकार है –
सियराम–सरूपु अगाध अनूप बिलोचन–मीननको जलु है।
श्रुति रामकथा, मुख रामको नामु, हिएँ पुनि रामहिको थलु है ॥
मति रामहि सों, गति रामहि सों, रति रामसों, रामहि को बलु है।
सबकी न कहै, तुलसी के मतें इतनो जग जीवनको फलु है ॥
श्री सीताराम जी के चरणों में प्रीति और भक्ति प्राप्त हो जाय यही जीवनफल है। यह प्रदान करने की क्षमता श्री हनुमान जी में ही है।
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29॥
भावार्थ – हे हनुमान जी! चारों युगों (सत्ययुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग ) – में आपका प्रताप जगत को सदैव प्रकाशित करता चला आया है ऐसा लोक में प्रसिद्ध है।
व्याख्या – मनुष्य के जीवन में प्रतिदिन–रात्रि में चारों युग आते–जाते रहते हैं। इसकी अनुभूति श्री हनुमान जी के द्वारा ही होती है। अथवा जागृति, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरीय चारों अवस्थाओं में भी आप ही द्रष्टारूप से सदैव उपस्थित रहते हैं।
साधु–संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥30॥
भावार्थ– आप साधु–संत की रक्षा करने वाले हैं, राक्षसों का संहार करने वाले हैं और श्री राम जी के अति प्रिय हैं।
व्याख्या – श्री हनुमान जी महाराज राम के दुलारे हैं। तात्पर्य यह है कि कोई बात प्रभु से मनवानी हो तो श्री हनुमान जी की आराधना करें।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥31॥
भावार्थ – माता जानकी ने आपको वरदान दिया है कि आप आठों प्रकार की सिद्धियाँ (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व) और नवों प्रकार की निधियाँ (पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, खर्व) प्रदान करने में समर्थ होंगे।
व्याख्या— रुद्रावतार होने के कारण समस्त प्रकार की सिद्धियाँ एवं निधियाँ श्री हनुमान जी को जन्म से ही प्राप्त थीं। उन सिद्धियों एवं निधियों को दूसरों को प्रदान करने की शक्ति माँ जानकी के आशीर्वाद से प्राप्त हुई।
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥32॥
भावार्थ – अनन्त काल से आप भगवान श्री राम के दास हैं। अत: रामनाम-रूपी रसायन (भवरोग की अमोघ औषधि) सदा आपके पास रहती है।
व्याख्या – कोई औषधि सिद्ध करने के बाद ही रसायन बन पाती है। उसके सिद्धि की पुनः आवश्यकता नहीं पड़ती, तत्काल उपयोग में लायी जा सकती है और फलदायक सिद्ध हो सकती है। अतः रामनाम रसायन हो चुका है, इसकी सिद्धि की कोई आवश्यकता नहीं है। सेवन करने से सद्यः फल प्राप्त होगा।
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम–जनम के दुख बिसरावै ॥33॥
भावार्थ – आपके भजन से लोग श्री राम को प्राप्त कर लेते हैं और अपने जन्म जन्मान्तर के दुःखाँ को भूल जाते हैं अर्थात् उन दु:खों से उन्हें मुक्ति मिल जाती है।
व्याख्या – भजन का मुख्य तात्पर्य यहाँ सेवा से है। सेवा दो प्रकार की होती है, पहली सकाम, दूसरी निष्काम। प्रभु को प्राप्त करने के लिये निष्काम और निःस्वार्थ सेवा की आवश्यकता है जैसा कि श्री हनुमान जी करते चले आ रहे हैं। अतः श्री राम की हनुमान जी जैसी सेवा से यहाँ संकेत है।
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहां जन्म हरि–भक्त कहाई ॥34॥
भावार्थ – अन्त समय में मृत्यु होने पर वह भक्त प्रभु के परमधाम (साकेत–धाम) जायगा और यदि उसे जन्म लेना पड़ा तो उसकी प्रसिद्धि हरिभक्त के रूपमें हो जायगी।
व्याख्या – भजन अथवा सेवा का परम फल है हरिभक्ति की प्राप्ति। यदि भक्त को पुनः जन्म लेना पड़ा तो अवध आदि तीर्थों में जन्म लेकर प्रभु का परम भक्त बन जाता है।
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥35॥
भावार्थ – आपकी इस महिमा को जान लेने के बाद कोई भी प्राणी किसी अन्य देवता को हृदय में धारण न करते हुए भी आपकी सेवा से ही जीवन का सभी सुख प्राप्त कर लेता है।
व्याख्या – श्री हनुमान जी से अष्टसिद्धि और नवनिधि के अतिरिक्त मोक्ष या भक्ति भी प्राप्त की जा सकती है। इस कारण इस मानव जीवन की अल्पायु में बहुत जगह न भटकने की बात कही गयी है। ऐसा दिशा–निर्देश किया गया है जहाँ से चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) प्राप्त किये जा सकते हैं।
यहाँ सर्वसुख का तात्पर्य आत्यन्तिक सुख से है जो श्री मारुतनन्दन के द्वारा ही मिल सकता है।
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36॥
भावार्थ – जो प्राणी वीरश्रेष्ठ श्री हनुमान जी का हृदयसे स्मरण करता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं और सभी प्रकार की पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
व्याख्या – जन्म–मरण–यातना का अन्त अर्थात् भवबन्धन से छुटकारा परमात्म प्रभु ही करा सकते हैं। भगवान् श्री हनुमान जी के वश में हैं। अतः श्री हनुमान जी सम्पूर्ण संकट और पीड़ाओं को दूर करते हुए जन्म–मरण के बन्धन से मुक्त कराने में पूर्ण समर्थ हैं।
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥37॥
भावार्थ– हे हनुमान् स्वामिन् ! आपकी जय हो ! जय हो !! जय हो !!! आप श्री गुरुदेव की भाँति मेरे ऊपर कृपा कीजिये।
व्याख्या – गुरुदेव जैसे शिष्य की धृष्टता आदि का ध्यान नहीं रखते और उसके कल्याण में ही लगे रहते हैं [ जैसे काकभुशुण्डि के गुरु], उसी प्रकार आप भी मेरे ऊपर गुरुदेव की ही भाँति कृपा करें ‘प्रभु मेरे अवगुन चित न धरो।’
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥38॥
भावार्थ – जो इस (हनुमान चालीसा) का सौ बार पाठ करता है, वह सारे बन्धनों और कष्टों से छुटकारा पा जाता है और उसे महान् सुख (परमपद–लाभ) की प्राप्ति होती है।
व्याख्या – श्री हनुमान चालीसा के पाठ की फलश्रुति इस तथा अगली चौपाई में बतलायी गयी है। संसार में किसी प्रकार के बन्धन से मुक्त होने के लिये प्रतिदिन सौ पाठ तथा दशांशरूप में ग्यारह पाठ, इस प्रकार एक सौ ग्यारह पाठ करना चाहिये। इससे व्यक्ति राघवेन्द्र प्रभु के सामीप्य का लाभ उठाकर अनन्त सुख प्राप्त करता है।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥39॥
भावार्थ– जो व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का पाठ करेगा उसे निश्चित रूप से सिद्धियों [लौकिक एवं पारलौकिक] की प्राप्ति होगी, भगवान शंकर इसके स्वयं साक्षी हैं।
व्याख्या – श्री शंकर जी के साक्षी होने का तात्पर्य यह है कि भगवान श्री सदाशिव की प्रेरणा से ही श्री तुलसीदास जी ने श्री हनुमान चालीसा की रचना की। अतः इसे भगवान शंकर का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त है। इसलिये यह श्री हनुमान जी की सिद्ध स्तुति है।
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥40॥
भावार्थ – हे नाथ श्री हनुमान जी ! तुलसीदास सदा–सर्वदा के लिये श्री हरि (भगवान् श्री राम) के सेवक है। ऐसा समझकर आप उनके हृदय–भवन में निवास कीजिये।
व्याख्या – श्री हनुमान चालीसा में श्री हनुमान जी की स्तुति करने के बाद इस चौपाई में श्री तुलसीदास जी ने उनसे अन्तिम वरदान माँग लिया है कि हे हनुमान जी! आप मेरे हृदय में सदैव निवास करें।
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
भावार्थ – हे पवनसुत श्री हनुमान जी! आप सारे संकटों को दूर करने वाले हैं तथा साक्षात् कल्याण की मूर्ति हैं। आप भगवान् श्री रामचन्द्र जी, लक्ष्मण जी और माता सीता जी के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिये।
व्याख्या – भक्त के हृदय में भगवान् रहते ही हैं। इसलिये भक्त को हृदय में विराजमान करने पर प्रभु स्वतः विराजमान हो जाते हैं। श्री हनुमान जी भगवान् राम के परम भक्त हैं। उनसे अन्त में यह प्रार्थना की गयी है कि प्रभु के साथ मेरे हृदय में आप विराजमान हों।
बिना श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता जी के श्री हनुमान जी का स्थायी निवास सम्भव भी नहीं है। इन चारों को हृदय में बैठाने का तात्पर्य चारों पदार्थों को एक साथ प्राप्त करने का है। चारों पदार्थों से तात्पर्य ज्ञान (राम), विवेक (लक्ष्मण), शान्ति (सीता जी) एवं सत्संग (हनुमान जी) से है।
सत्संग के द्वारा ही ज्ञान, विवेक एवं शान्ति की प्राप्ति होती है। यहाँ श्री हनुमान जी सत्संग के प्रतीक हैं। अतः श्री हनुमान जी की आराधना से सब कुछ प्राप्त हो सकता है।
॥ जय जय सियाराम जय जय हनुमान ॥
॥ Hanuman Chalisa meaning in Hindi sampoorn ॥ हनुमान चालीसा हिन्दी अर्थ सहित सम्पूर्ण ॥
Hanuman Chalisa Lyrics in English with Meaning
The meaning of Hanuman Chalisa lyrics in English is given below.
॥ Doha ॥
Shri Guru charana saroja raja, nija manu mukuru sudhaari,
Baranau Raghubara Bimala jasu, jo daayaku phala chari ।
Cleansing the mirror of my mind with the dust from the Lotus-feet of Divine Guru, I describe the unblemished glory of Lord Rama, which bestows four fruits of Righteousness (Dharma), Wealth (Artha), Pleasure (Kama) and Liberation (Moksha).
- [Shri Guru=revered Guru; Charana=feet; Saroja=lotus; Raja=dust / particle; Nija=Mine; manu=mind; mukuru=mirror; sudhaari=Cleansing/applying; Baranau=Describe; Raghubara=Of Raghu Vamsha, Lord Rama; Bimala=pure; Jasu=Glory; Jo=which, Daayaku=bestower, Phala=fruit, Chari=four ]
Buddhiheena tanu jaanike, sumirau Pavanakumar,
Bal buddhi bidya dehu mohe harahu kalesa bikara ॥
Considering this person as intelligence less, I remember Lord Hanuman. Give me strength, intelligence and knowledge, cure my body ailments and mental imperfections.
- [BuddhiHeena=without intelligence; tanu=body, person; jaanike=knowing; sumirau=remembder; pavanakumar=son of wind god, Hanuman; Bal=strength; Buddhi=intelligence; Bidya=knowledge; dehu=give; harahu=remove, clear; kalesa=ailments; bikara=imperfections]
॥ Chaupai ॥
Jai Hanuman gyaan guna sagar,
Jai kapees tihun loka ujagar ॥1॥
Victory to Hanuman who is the ocean of Wisdom and Virtues, Victory to the king of Monkeys who is illuminating three worlds.
- [Jaya=victory/ glory; gyaan=Wisdom/Knowledge; guna=virtues/ qualities; sagar=ocean; kapees =King of Monkeys=Hanuman; tihun=three; loka=world; ujaagara=illuminator]
Ramdoot atulit bal dhama,
Anjani–putra Pavan sut nama ॥2॥
You are the messenger of Rama (to Sita), You are the abode of incomparable power. You are also called by the names of ‘Anjani Putra’ (Son of Anjana) and ‘Pavana suta’ (son of wind god).
- [RamDoota=Lord Ram messenger; atulita=measured; atilita=immeasurable; bala=power; dhama=abode; Anjani=of Anjana; putra=son; pavana=wind; suta=son; naama=name]
Mahabir vikram Bajrangi,
Kumati nivar sumati ke sangi ॥3॥
Oh mighty valorous one, of terrific deeds whose body organs are as strong as Diamond (or the weapon of God Indra). Cure my bad mind oh companion of those with pure (good) mind.
- [Maha=great;Beera=Brave; Vikram=great deeds; bajra=diamond; ang=body parts; kumati=bad intellect; nivara=cure, clean, destroy; sumati=good intelligence; ke=of; sangi=companion ]
Kanchan baran biraj subesa,
Kanan kundal kunchit kesa ॥4॥
You are golden colored, you are shining in your beautiful attire. You have beautiful ear-rings in your ear and curly hairs.
- [Kaanchana=golden; barana=hue; biraja=resplendent, shining; subesa=good attire/ good looks; kanana=ear; Kundala=ear-rings; kunchita=curly; Kesha=hair]
Hath bajra aur dhuvaja viraje,
Kandhe moonj janehu saje ॥5॥
Vajrayudha (mace) and flag are shining in your hand. Sacred thread made of Munja grass adorns your shoulder.
- [Hath=hand, Bajra=Mace as powerful as vajrayudha or diamond; au=and; dhvaja=flag; biraji=take place; kaandhe=on shoulders; munji=of munja grass; janeoo=upavita thread, sacred thread; Sajai=adorn ]
Sankar suvan Kesri nandan,
Tej pratap maha jag vandan ॥6॥
O partial incarnation of Lord shiva, giver of joy to King Kesari. Your great majesty is revered by the whole world.
- [Shankara=Lord shiva; Kesari=King Kesari, father of Hanuman; Nandana=son. joy giver; Teja=shine, grandness; Pratapa=prowess; Maha=great; jaga=world; bandana=worship]
Vidyavan guni ati chatur,
Ram kaj karibe ko aatur ॥7॥
Oh one learned in all Vidyas, one full of virtues, Very clever. You are always eager to do Rama’s tasks.
- [Bidyavan=one who has learned Vidyas; Guni=having gunas; ati=very; chatura=clever; Kaaja=task, work; Karibe=doing, do; ko=to; Aatura=eager ]
Prabu charitra sunibe ko rasiya,
Ram Lakhan Sita man basiya ॥8॥
You enjoy listening to Lord Rama’s story; Lord Rama, Lakshman and Sita reside in your heart.
- [Prabhu=lord; Charitra=story, history; sunibe=hear; ko=to; Rasiya=joy; Mana=mind; Basiya=reside, stay]
Sukshma roop dhari Siyahi dikhava,
Vikat roop dhari lank jarava ॥9॥
Assuming the smallest form you saw (visited) Sita. Assuming the gigantic form you burnt down the Lanka.
- [Sookshma=micro, minute; roopa=form, body; dhari=assuming, taking; siyahi=Sita; Dikhava=saw; Bikata=enormous; Lanka=Sri Lanka; Jaraava=burned]
Bhim roop dhari asur sanhare,
Ramchandra ke kaj sanvare ॥10॥
Assuming a terrible form you slayed demons. You made Lord Rama’s works easier.
- [Bheema=terrible; roopa=form; Dhari=assuming; Asura=demon; samhar=destroy; Ramachandra=Rama of Chandra Vamsha; Kaja=work; Samvare=manage, make it easy, carry out]
Laye sanjivan Lakhan jiyaye,
Shri Raghuveer harashi ur laye ॥11॥
You brought Sanjeevini mountain to save Lakshmana’s Life. Lord Rama embraced you in joy.
- [Laaya=brought; Sanjeevani=a herb that brings back the dead; Lakhan=Lakshman; Jiyaye=saved; Raghubira=Brave one of Raghu Clan, Lord Rama; Harashi=with joy; Ura=neck; Laye=gave, brought ]
Raghupati kinhi bahut badai,
Tum mum priye Bharat–hi sam bhai ॥12॥
Lord Rama praised you very much saying ‘You are dear to me like my brother Bharata’
- [Raghupati=King of Raghu Clan; Bahut=very much; Badaayi=praised; Tum=you; mama=my, mine; priya=dear; Bharata=brother of Rama; hi=like; sama=equal; Bhai=brother ]
Sahas badan tumharo jas gaave,
Us kahi Shripati kanth lagaave ॥13॥
‘May the thousand headed serpent Adishesha sing of your glory’ saying this Lord Rama embraced you.
- [Sahasa=thousand; badan=body; Tumharo=your; Jasa=success, glory; Gaavai=sing; asa=like this; kahi=saying; shripati=husband of Goddess shree or Lakshmi, Lord Rama; Kantha=neck; Lagavai=embrace]
Sankadik Brahmadi Muneesa,
Narad Sarad sahit aheesa ॥14॥
Sanaka, Brahma and other Royal sages, Narad, Saraswati and Adishesha.
- [Sanaka=sage sanaka, adika=other more; brahma=Creator Brahma; Aadi=and others; Muneesha=Royal sages; Narada=Sage Narad; Sharada=Goddess saraswati; Sahita=including; Aheeshaa=Adishesha]
Yam Kuber Digpal jahan te,
Kavi Kovid kahi sake kahan te ॥15॥
Yama, Kubera, Dikpaalakas, poets and singers; they can not describe your greatness properly
- [Yama=God of Time/death; Kubera=God of treasures; Dikpaalas=Gods of 8 directions; Kavi=poet; Kovida=singer; Kahi=how; Kaha=say;]
Tum upkar Sugreevahin keenha,
Ram milaye rajpad deenha ॥16॥
You helped Sugreeva. You made him friends with Rama which gave him his Kingship back.
- [Tuma=you; Upakaara=help; Sugreeva=Monkey King Sugreeva; Kinha=did; Milaaya=made them meet, join; Rajapada=kingship; Dinha=gave]
Tumharo mantra Vibheeshan mana,
Lankeshwar bhaye sab jag jana ॥17॥
Vibheeshana accepted your Suggestion. He became the king of Lanka because of your advice, whole world knows it.
- [Tumharo=your; mantra=words; Vibheeshan=brother of Raavan who fought on Rama’s side; Maana=accepted; Lankeshvara=King of Lanka; Saba=all; Jaga=world; Jaana=knows]
Yug sahasra jojan par bhanu,
Leelyo tahi madhur phal janu ॥18॥
You flew towards the sun who is thousands of years of Yojanas away, thinking of him as a sweet fruit
- [Yuga=year; Sahasra=thousand; Yojana=distance of 10-15km, 8 mile is the most agreed upon distance; para=away; Bhanu=sun; Madhura=sweet; Phala=fruit; Janu=knowing, thinking]
Prabhu mudrika meli mukh mahee,
Jaladhi langhi gaye achraj nahee ॥19॥
Putting the ring of Rama in your mouth, you jumped and flew over Ocean to Lanka, there is no surprise in that.
- [Prabhu=Lord; Mudrika=ring; meli=in,over; Mukha=mouth; Mahi=keeping; jaladhi=Ocean; Laanghi gaye=jumped; Acharaja=surprise; Naahi=no]
Durgama kaaj jagat ke jete,
Sugam anugraha tumhre tete ॥20॥
All the difficult tasks in the world, become easy if there is your grace.
- [Durgama=difficult; Kaja=task; Jagata=word; Ke=of; Jete=how many; Sugama=easy; Anugraha=grace; Tumhare=your; tete=if there is]
Ram dware tum rakhvare,
Hoat na aagya binu paisare ॥21॥
Your the doorkeeper of Rama’s court. Without your permission nobody can enter Rama’s abode.
- [Duare=door;tuma=you;rakhavaare=keeper; hota=have, having; na=without; agyaa=permission; binu=nobody; paisaare=enter, come in]
Sub sukh lahai tumhari sarna,
Tum rakshak kahu ko dar na ॥22॥
All happiness stay with those who take refuge in you. You are the protector, why be afraid?
- [Saba=all; sukha=happiness, pleasures; Lahai=stay; tumhari=in your; sarana=refuge; tuma=you; rakshaka=protector; kahoo ko=why? or of whom; darana=be afraid]
Aapan tej samharo aapai,
Teenhon lok hank te kanpai ॥23॥
Only you can cancel your powers. All three worlds tremble in fear.
- [Aapan=your; Tej=power; Samharo=destroy, control; Apai=you; Tino=three; lok=worlds; hanka=fear; kapai=shake]
Bhoot pisach nikat nahin aavai,
Mahavir jab naam sunavai ॥24॥
Evil Spirits and Ghosts don’t come near when your name is heard O great Courageous one.
- [Bhoota=Evil spirits, Pishaacha=ghost; nikata=close; nahi=don’t; avai=come; mahabira=maha+bira=great+brave; jaba=when; naama=name; sunavai=heard]
Nasei rog harei sab peera,
Japat nirantar Hanumant beera ॥25॥
Diseases will be ended, all pains will be gone, when a devotee continuously repeats Hanuman the brave’s name.
- [Naasai=end, destroy; Roga=disease; Harai=end, close; Saba=all; Peera=pains, diseases, afflictions; Japata=keep repeating, remembering; nirantara=continuously; Beera=Brave]
Sankat te Hanuman chudavai,
Man karam vachan dyan jo lavai ॥26॥
Hanuman will release those from troubles who meditate upon him in their mind, actions and words.
- [Sankata=troubles, difficulties; te=from; Chhudaavai=release; mana=mind; krama=actions; vachana=words; dhyana=meditate, contemplate; jo=who; Lavai=apply, do, bring]
Sab par Ram tapasvee raja,
Tin ke kaaj sakal tum saja ॥27॥
Rama is the king of all, he is the king of yogis. You managed all his tasks, or in other translation, He whoever takes refuge in Rama you will manage all their tasks.
- [Saba=all; para=on; Tapasvi=one of austerities; Raja=king; Tina ke=whose; Kaaja=work; tuma=you; saaja=carried]
Aur manorath jo koi lavai,
Sohi amit jeevan phal pavai ॥28॥
Whoever brings many of their wishes to you, they will get unlimited fruits.
- [Aur=many, more; Manoratha=mental wishes, desires; jo koi=whoever; Lavai=brings; amita=infinite; jivana=life; phala=fruits; pavai=get, receive]
Charon yug partaap tumhara,
Hai parsidh jagat ujiyara ॥29॥
Your glory is for all the four yugas, Your greatness is very famous throughout the world, and illumines the world.
- [Charo=four; juga=yugas; pratapa=glory; tumhara=your; hai=is; prasiddha=famous; jagata=world; ujiyara=illumined, spread]
Sadhu–sant ke tum rakhware,
Asur nikandan Ram dulare ॥30॥
You are the guardian of Saints and Good people. You killed demons and you are dear to Rama.
- [Sadhu=good people, monks, simple people; Santa=saint; ke=of; tuma=you; Rakhavaare=keeper, guardian; Asura=demons; Nikandana=slayer; Dulare=dear]
Asht siddhi nav nidhi ke daata,
Us bur deen Janki mata ॥31॥
Mother Sita granted you a boon to become the bestower of 8 Siddhis (supernatural powers) and 9 Nidhis (divine treasures).
- [Ashta=eight; Siddhi=supernatural powers; Nava=nine; Nidhi=treasures; Ke=of; Daata=giver; Asa=like that; bara=boon; Dinha=give or gave; Janaaki=daughter of Janaka, Sita; Maata=mother]
Ram rasayan tumhare paasa,
Sada raho Raghupati ke daasa ॥32॥
You have the sweet devotion to Rama. May you always be a devotee of Lord Rama.
- [Ras=devotion, sweetness, love; Rasaayana=mixture or collection of sweetness; tumhaare=your; paasa=near; Sadaa=always; Raho= stay; Raghupati=Lord of Raghu Clan, Lord Rama; Ke=of; Daasa=servant, devotee]
Tumhare bhajan Ram ko pavei,
Janam janam ke dukh bisravai ॥33॥
Singing your name gets us Rama himself and Removes the sufferings of many lives.
- [Tumhare=your; Bhajana=chanting; Ko=to; Pavai=takes to, gives; Janama=life; Janama janama=life after life; Ke=of; dukha=unhappiness; Bisaravai=remove]
Antt kaal Raghuvar pur jayee,
Jahan janam Hari–bhakt kahayee ॥34॥
He who sings of you, at the end of the life he attains to Lord Rama’s abode. Where he will be born as a Devotee of Lord Rama.
- [Anta=End; Kaala=time; Raghupati=Lord of Raghu clan, Rama; pura=city; Jaaee=go; Jaha=where; janma=born; Hari= Lord Rama; Bhakta=devotee; Kahai=called as, is said]
Aur Devta chit na dharehi,
Hanumat sehi sarv sukh karehi ॥35॥
Not contemplating on other gods, gets his all happiness from Hanuman by serving him.
- [Aura=more, other; Devata=gods; chitta=mind; na=dont; Dharai=contemplating; Sei=serving; sarva=all; sukha=happiness]
Sankat kate mite sab peera,
Jo sumirai Hanumat balbeera ॥36॥
Pains will be removed, all afflictions will be gone of who remembers Hanuman the mighty brave one.
- [Sankata=trouble; katai=cut short; Mitai=removed; Saba=all; Peera=pains, troubles; Jo=who; Sumirai=remembers; Bala=power; Bira=brave]
Jai Jai Jai Hanuman gosaain,
Kripa karahu Gurudev ki naain ॥37॥
Victory to you O master of the senses. Show mercy on us like a Guru does.
- [Jaya=victory; Gosai=master of senses; kripaa=mercy, compassion; karahu=do, show; guru=teacher, dispeller of darkness; Deva=god; Ki nai=like;]
Jo sat bar paath kare koi,
Jhutehi bandhi maha sukh hohi ॥38॥
He whoever recits this hundred times, his chains of Bondage will be cut, Great happiness will be his.
- [Jo=whoever; Shata=hundred; Baar=times; Paathakar=reciting; chhutahi=cut, removed; bandi=shackles, bondage; Mahasukha=great happiness, bliss; Hoi=happens, gets to]
Jo yeh padhe Hanuman chalisa,
Hoye siddhi sakhi gaureesa ॥39॥
He whoever reads these verses on Hanuman, he will get spiritual attainments, Lord Shiva is the witness to this statement.
- [Jo=who; yaha=this; Padhai=reads; Chalisa=40 lined hymn; Hoya=happens; Siddhi=attainments; Saakhi=witness; Gaureesha=Gowri+isha=Husband of Gowri=Lord Shiva;]
Tulsidas sada Hari chera,
Keejai nath hrdaye mein dera ॥40॥
Tulasidas is always a disciple of Lord Rama. O lord make my heart your abode.
- [Sada=always; Hari= Lord Vishnu=Lord Rama; Chera=disciple, devotee; Kijai=please do; Natha=Lord; Hridaya=heart; mama=my, mine; Dheraa=abode]
॥ Doha ॥
Pavan tanay sankat haran, mangal murti roop ।
Ram Lakhan Sita sahit, hrdaye basahu sur bhoop ॥
O Son of wind god, remover of difficulties, oh one of auspicious form. With Ram, Lakshman and Sita reside in our hearts of King of Gods.
- [Pavanatanaya=Pavana+tanaya=Wind+son, son of wind god, Hanuman; Sankata=trouble; Harana=remover; Mangala=auspicious; Murati=statue, form; Rupa=form; Sahita=including; Hridaya=heart; Basahu=reside; Sura=gods; Bhupa=king ]
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