Manas Puja – मानस पूजा संस्कृत में हिन्दी अर्थ सहित

Manas Puja – मानस पूजा का अर्थ → मानस, जिसका अर्थ है “मन” या “विचार”, और पूजा, जिसका अर्थ है “अर्चना”, “पूजन”

बाह्य-पूजा (बाह्य का अर्थ बाहरी शुद्धि से है।) के साथ-साथ मानस पूजा का भी अत्यधिक महत्त्व है। जो बाह्य-पूजा न कर सकें वे मानस पूजा तो कर ही सकते हैं। यहाँ मानस पूजा का संक्षिप्त (brief or short) स्वरूप दिया जा रहा है ।

[Hinglish: Baahyapooja (baahy ka arth baaharee shuddhi se hai.) ke saath-saath manas puja ka bhee atyadhik mahattv hai, jo baahyapooja na kar saken ve maanas pooja to kar hee sakate hain. yahaan manas puja ka sankshipt (short) svaroop diya ja raha hai.]

[English: Along with external worship (externally means external purification), manas worship is also of great importance. Those who cannot do external worship can worship Manas. Here a brief form of Manas Puja is being given.

Manas Puja Means – Manas, meaning “mind” or “thoughts,” and puja, meaning “worship” or “adoration.”]

पूजा की भीतरी तैयारी

शास्त्रों में पूजा को हजार गुना अधिक महत्त्वपूर्ण बनाने के लिये एक उपाय बतलाया गया है। वह उपाय है, मानस पूजा। जिसे पूजा से पहले करके फिर बाह्य वस्तुओं से पूजन करें।

पहले पुष्प-प्रकरण में शास्त्र का एक वचन उद्धृत किया गया है. जिसमें बतलाया गया है कि मनःकल्पित यदि एक फूल भी चढ़ा दिया जाय तो करोड़ों बाहरी फूल चढ़ाने के बराबर होता है। इसी प्रकार मानस चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य भी भगवान को करोड़ गुना अधिक संतोष दे सकेंगे। अतः मानस पूजा बहुत अपेक्षित है।

Manas Puja – मानस पूजा संस्कृत में हिन्दी अर्थ सहित

Manas puja in Sanskrit Hindi arth sahit (Manas Puja Vidhi)

manas puja
Manas Pooja

वस्तुत: भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं, वे तो भाव के भूखे हैं। संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर की पूजा की जा सके। इसलिये पुराणों में मानस पूजा का विशेष महत्त्व माना गया है।

मानस पूजा में भक्त अपने इष्ट देव को मुक्तामणियों से मण्डित कर स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान कराता है। स्वर्ग लोक की मन्दाकिनी गङ्गा के जलसे अपने आराध्य को स्नान कराता है, कामधेनु गौ के दुग्ध से पञ्चामृत का निर्माण करता है। वस्त्र आभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। पृथ्वी रूपी गन्ध का अनुलेपन करता है। अपने आराध्य के लिये कुबेर की पुष्प वाटिका से स्वर्ण कमल पुष्पों का चयन करता है। भावना से वायु रूपी धूप, अग्नि रूपी दीपक तथा अमृत रूपी नैवेद्य भगवान को अर्पण करने की विधि है।

इसके साथ ही त्रिलोक की सम्पूर्ण वस्तु सभी उपचार सच्चिदानन्दघन परमात्म-प्रभु के चरणों में भावना से भक्त अर्पण करता है। यह है मानस पूजा का स्वरूप। इसकी एक संक्षिप्त विधि भी पुराणों में वर्णित है। जो नीचे लिखी जा रही है


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(1) ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि।

(प्रभो! मैं पृथ्वीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता हूँ।)

(Gods! I offer you the earth-form odor (sandalwood)

(2) ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि ।

(प्रभो ! मैं आकाश रूप पुष्प आपको अर्पित करता हूँ।)

(Lord! I offer you flowers in the form of sky.)

(3) ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि |

(प्रभो ! मैं वायु देव के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूँ।)

(Lord! I offer you incense in the form of the god of wind.)

(4) ॐ रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि ।

(प्रभो ! मैं अग्नि देव के रूप में दीपक आपको प्रदान करता हूँ।)

(Lord! I offer you the lamp in the form of fire god.)

(5) ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि ।

(प्रभो ! मैं अमृतरूपी नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ।)

(Prabhu! I request you as nectar of nectar.)

(6) ॐ सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि ।

(प्रभो! मैं सर्वात्मा के रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूँ।)

(Lord! I dedicate all the remedies of the world at your feet as the Supreme Soul.)

मानस पूजा से चित्त एकाग्र और सरस हो जाता है, इससे बाह्य पूजा में भी रस मिलने लगता है। यद्यपि इसका प्रचार कम है, तथापि इसे अवश्य अपनाना चाहिये ।

इन मन्त्रों से भावनापूर्वक मानस-पूजा की जा सकती है।

(Manas pooja can be done emotionally (reverence) with these mantras.)


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