Bhaktamar Stotra | भक्तामर स्तोत्र (Sanskrit)

Bhaktamar Stotra was composed by Acharya Mantung Ji. Another name of this stotra is Adinath stotra. It is written in Sanskrit and because of the first word being ‘Bhaktamar’, the name of this stotra became ‘Bhaktamar Stotra’. It is written in Vasant-tilka verses. We speak ‘Bhaktambar’ while it is ‘Bhaktamar‘.

bhaktamar stotra lyrics
Bhaktamar Stotra Lyrics – Acharya Mantung Ji Swami

भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग जी ने की थी। इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है। यह संस्कृत में लिखा गया है तथा प्रथम शब्द ‘भक्तामर’ होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम ‘भक्तामर स्तोत्र’ पड़ गया। ये वसंत-तिलका छंद में लिखा गया है। हम लोग ‘भक्ताम्बर’ बोलते हैं जबकि ये ‘भक्तामर‘ है।

मानतुंग आचार्य  – मानतुंग आचार्य सातवी शताब्दी के जैन मुनी थे। जो श्री भक्तामर स्तोत्र के निर्माता है। आचार्य मानतूंग मध्य प्रदेश के धारा नगरी से १०० किलो मीटर के अंतर पर एक शिखर कि चोटी पर जाकर सदा के लिये ध्यानस्त हो गए। और वही पर उनको मोक्ष कि प्राप्ती हुई। आज उस शिखर को मानतुंगगिरि के नाम से जाना जाता है।

भक्तामर स्तोत्र में 48 श्लोक हैं। हर श्लोक में मंत्र शक्ति निहित है। इसके 48 के 48 श्लोकों में ‘न’, ‘त’, ‘व’, ‘र’ ये 4 अक्षर पाए जाते हैं।

Bhaktamar Stotra | भक्तामर स्तोत्र

भक्तामर स्तोत्र का प्रसिद्ध तथा सर्वसिद्धिदायक महामंत्र है- ‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय् नम:।

48 काव्यों के 48 विशेष मंत्र भी हैं।

48 काव्यों की महत्ता

  1. सर्वविघ्न विनाशक काव्य
  2. शत्रु तथा शिरपीड़ानाशक काव्य
  3. सर्वसिद्धिदायक काव्य
  4. जल-जंतु भयमोचक काव्य
  5. नेत्ररोग संहारक काव्य
  6. सरस्वती विद्या प्रसारक काव्य
  7. सर्व संकट निवारक काव्य
  8. सर्वारिष्ट योग निवारक काव्य
  9. भय-पापनाशक काव्य
  10. कुकर विष निवारक काव्य
  11. वांछापूरक काव्य
  12. हस्तीमद निवारक काव्य
  13. चोर भय व एनी भय निवारक काव्य
  14. आधि-व्याधिनाशक काव्य
  15. राजवैभव प्रदायक काव्य
  16. सर्व विजयदायक काव्य
  17. सर्वरोग निरोधक काव्य
  18. शत्रु सैन्य स्तंभक काव्य
  19. परविद्या छेदक काव्य
  20. संतान संपत्ति सौभाग्य प्रदायक काव्य
  21. सर्ववशीकरण काव्य
  22. भूत-पिशाच बाधा निरोधक काव्य
  23. प्रेतबाधा निवारक काव्य
  24. शिरो रोगनाशक काव्य
  25. दृष्टिदोष निरोधक काव्य
  26. आधा शीशी एवं प्रसव पीड़ा विनाशक काव्य
  27. शत्रु उन्मूलक काव्य
  28. अशोक वृक्ष प्रतिहार्य काव्य
  29. सिंहासन प्रतिहार्य काव्य
  30. चमर प्रतिहार्य काव्य
  31. छत्र प्रतिहार्य काव्य
  32. देव दुंदुभी प्रतिहार्य काव्य
  33. पुष्पवृष्टि प्रतिहार्य
  34. भामंडल प्रतिहार्य
  35. दिव्य ध्वनि प्रतिहार्य
  36. लक्ष्मी प्रदायक काव्य
  37. दुष्टता प्रतिरोधक काव्य
  38. वैभववर्धक काव्य
  39. सिंह शक्ति संहारक काव्य
  40. सर्वाग्निशामक काव्य
  41. भुजंग भयभंजक काव्य
  42. युद्ध भय विनाशक काव्य
  43. सर्व शांतिदायक काव्य
  44. भयानक जल विपत्ति विनाशक काव्य
  45. सर्व भयानक रोग विनाशक काव्य
  46. बंधन विमोचक काव्य
  47. सर्व भय निवारक काव्य
  48. मनोवांछित सिद्धिदायक काव्य

भक्तामर स्तोत्र का प्रतिदिन आराधन कर धर्मध्यान कर जीवन में सुख-शांति का अनुभव करें।

जय जिनेन्द्र…!

bhaktamar stotra in sanskrit
Bhaktamar Sstotra in Sanskrit

Bhaktamar Stotra Sanskrit | भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत)

वसंततिलकावृत्तम्।

सर्व विघ्न उपद्रवनाशक

भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-
मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् ।
सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा-
वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥1॥

शत्रु तथा शिरपीडा नाशक

यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा-
दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै ।
स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः,
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥

सर्वसिद्धिदायक

बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ,
स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् ।
बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब-
मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥

जलजंतु निरोधक

वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्,
कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया ।
कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं,
को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥

नेत्ररोग निवारक

सोहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश,
कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः ।
प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं,
नाभ्येति किं निज-शिशोः परि-पालनार्थम् ॥5॥

विद्या प्रदायक

अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम,
त्वद्भक्ति-रेव-मुखरी-कुरुते बलान्माम् ।
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति,
तच्चाम्र-चारु-कालिका-निकरैक-हेतु ॥6॥

सर्व विष व संकट निवारक

त्वत्संस्तवेन भव-संतति-सन्निबद्धं
पापं क्षणात्क्षय-मुपैति शरीर-भाजाम् ।
आक्रांत-लोक-मलिनील-मशेष-माशु,
सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम्॥7॥

सर्वारिष्ट निवारक

मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेद-
मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् ।
चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु,
मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः ॥8॥

सर्वभय निवारक

आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं,
त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हंति ।
दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव,
पद्माकरेषु जलजानि विकास-भांजि ॥9॥

कूकर विष निवारक

नात्यद्भुतं भुवन-भूषण-भूतनाथ,
भूतैर्गुणैर्भुवि भवंत-मभिष्टु-वंतः ।
तुल्या भवंति भवतो ननु तेन किं वा,
भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥10॥

इच्छित-आकर्षक

दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष-विलोकनीयं,
नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः ।
पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो,
क्षारं जलं जलनिधे रसितुँ क इच्छेत् ॥11॥

हस्तिमद-निवारक

यैः शांत-राग-रुचिभिः परमाणु-भिस्त्वं,
निर्मापितस्त्रि-भुवनैक-ललाम-भूत ।
तावंत एव खलु तेप्यणवः पृथिव्यां,
यत्ते समान-मपरं न हि रूपमस्ति ॥12॥

चोर भय व अन्यभय निवारक

वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरगनेत्र-हारि,
निःशेष-निर्जित-जगत्त्रित-योपमानम् ।
बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य,
यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ॥13॥

आधि-व्याधि-नाशक लक्ष्मी-प्रदायक

सम्पूर्ण-मण्डल-शशांक-कला कलाप-
शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंग्घयंति ।
ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वर-नाथमेकं,
कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम ॥14॥

राजसम्मान-सौभाग्यवर्धक

चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि-
नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् ।
कल्पांत-काल-मरुता चलिता चलेन
किं मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित् ॥15॥

सर्व-विजय-दायक

निर्धूम-वर्त्ति-रपवर्जित-तैलपूरः,
कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटी-करोषि ।
गम्यो न जातु मरुतां चलिता-चलानां,
दीपोपरस्त्वमसि नाथ! जगत्प्रकाशः ॥16॥

bhaktamar stotra sanskrit
Bhaktamar Stotra Sanskrit

सर्व उदर पीडा नाशक

नास्तं कदाचिदुपयासि न राहु-गम्यः,
स्पष्टी-करोषि सहसा युगपज्जगंति ।
नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महा-प्रभावः,
सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र लोके ॥17॥

शत्रु सेना स्तम्भक

नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारं।
गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् ।
विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्प-कांति,
विद्योतयज्-जगदपूर्व-शशांक-विम्बम् ॥18॥

जादू-टोना-प्रभाव नाशक

किं शर्वरीषु शशिनान्हि विवस्वता वा,
युष्मन्मुखेन्दु-दलितेषु तमःसु नाथ ।
निष्पन्न-शालि-वन-शालिनी जीव-लोके,
कार्यं कियज्-जलधरैर्जल-भारनम्रैः ॥19॥

संतान-लक्ष्मी-सौभाग्य-विजय बुद्धिदायक

ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं
नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु ।
तेजःस्फुरन्मणिषु याति यथा महत्वं,
नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेपि ॥20॥

सर्व वशीकरण्

मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा,
दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति ।
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः,
कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेपि ॥21॥

भूत-पिशाचादि व्यंतर बाधा निरोधक

स्त्रीणां शतानि शतशो जनयंति पुत्रान्-
नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता ।
सर्वा दिशो दधति भानि सहस्त्र-रश्मिं,
प्राच्येव दिग्जनयति स्फुर-दंशु-जालम् ॥22॥

प्रेत बाधा निवारक

त्वामा-मनंति मुनयः परमं पुमांस-
मादित्य-वर्ण-ममलं तमसः पुरस्तात्
त्वामेव सम्य-गुपलभ्य जयंति मृत्युं,
नान्यः शिवः शिव-पदस्य मुनीन्द्र पंथाः ॥23॥

शिर पीडा नाशक

त्वा-मव्ययं विभु-मचिंत्य-मसंखय-माद्यं,
ब्रह्माण-मीश्वर-मनंत-मनंग केतुम् ।
योगीश्वरं विदित-योग-मनेक-मेकं,
ज्ञान-स्वरूप-ममलं प्रवदंति संतः ॥24॥

नज़र (दृष्टि देष) नाशक

बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्,
त्त्वं शंकरोसि भुवन-त्रय-शंकरत्वात् ।
धातासि धीर! शिव-मार्ग-विधेर्-विधानात्,
व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोसि ॥25॥

आधा शीशी (सिर दर्द) एवं प्रसूति पीडा नाशक

तुभ्यं नम स्त्रिभुवनार्ति-हाराय नाथ,
तुभ्यं नमः क्षिति-तलामल-भूषणाय ।
तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय,
तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय ॥26॥

शत्रुकृत-हानि निरोधक

को विस्मयोत्र यदि नाम गुणैरशेषै,
स्त्वं संश्रितो निरवकाश-तया मुनीश ।
दोषै-रुपात्त-विविधाश्रय-जात-गर्वैः,
स्वप्नांतरेपि न कदाचिद-पीक्षितोसि ॥27।।

सर्व कार्य सिद्धि दायक

उच्चैर-शोक-तरु-संश्रित-मुन्मयूख-
माभाति रूप-ममलं भवतो नितांतम् ।
स्पष्टोल्लसत-किरणमस्त-तमोवितानं,
बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति ॥28॥

नेत्र पीडा व बिच्छू विष नाशक

सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे,
विभाजते तव वपुः कानका-वदातम ।
बिम्बं वियद्-विलस-दंशु-लता-वितानं,
तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्त्र-रश्मेः ॥29॥

शत्रु स्तम्भक

कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं,
विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कांतम् ।
उद्यच्छशांक-शुचि-निर्झर-वारि-धार-
मुच्चैस्तटं सुर-गिरेरिव शात-कौम्भम् ॥30॥

राज्य सम्मान दायक व चर्म रोग नाशक

छत्र-त्रयं तव विभाति शशांक-कांत-
मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम् ।
मुक्ता-फल-प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभं,
प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥31॥

संग्रहणी आदि उदर पीडा नाशक

गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्वभाग-
स्त्रैलोक्य-लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः ।
सद्धर्म-राज-जय-घोषण-घोषकः सन्,
खे दुन्दुभिर्-ध्वनति ते यशसः प्रवादि ॥32॥

bhaktamar sanskrit
Bhaktamar Sanskrit

सर्व ज्वर नाशक

मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात
संतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा ।
गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता,
दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा ॥33॥

गर्व रक्षक

शुम्भत्प्रभा-वलय-भूरि-विभा विभोस्ते,
लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमा-क्षिपंती ।
प्रोद्यद्दिवाकर्-निरंतर-भूरि-संख्या,
दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्याम् ॥34॥

दुर्भिक्ष चोरी मिरगी आदि निवारक

स्वर्गा-पवर्ग-गममार्ग-विमार्गणेष्टः,
सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस-त्रिलोक्याः ।
दिव्य-ध्वनिर-भवति ते विशदार्थ-सर्व-
भाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः प्रयोज्यः ॥35॥

सम्पत्ति-दायक

उन्निद्र-हेम-नवपंकजपुंज-कांती,
पर्युल्लसन्नख-मयूख-शिखा-भिरामौ ।
पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र धत्तः,
पद्मानि तत्र विबुधाः परि-कल्पयंति ॥36॥

दुर्जन वशीकरण

इत्थं यथा तव विभूति-रभूज्जिनेन्द्र,
धर्मोप-देशन विधौ न तथा परस्य ।
यादृक् प्रभा देनकृतः प्रहतान्ध-कारा,
तादृक्कुतो ग्रह-गणस्य विकासिनोपि ॥37॥

हाथी वशीकरण

श्च्योतन-मदा-विल-विलोल-कपोल-मूल-
मत्त-भ्रमद-भ्रमर-नाद विवृद्ध-कोपम् ।
ऐरावताभ-मिभ-मुद्धत-मापतंतं,
दृष्टवा भयं भवति नो भवदा-श्रितानाम् ॥38॥

सिंह भय निवारक
भिन्नेभ-कुम्भ-गल-दुज्ज्वल-शोणिताक्त-
मुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः ।
बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणा-धिपोपि,
नाक्रामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥39॥

अग्नि भय निवारक

कल्पांत-काल-पवनोद्धत-वह्नि-कल्पं,
दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्स्फुलिंगम् ।
विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख-मापतंतं,
त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्य-शेषम् ॥40॥

सर्प विष निवारक

रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ-नीलं,
क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतंतम् ।
आक्रामति क्रमयुगेन निरस्त-शंकस्-
त्वन्नाम-नाग-दमनी हृदि यस्य पुंस ॥41॥

युद्ध भय निवारक

वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नाद-
माजौ बलं बलवतामपि भू-पतीनाम् ।
उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं,
त्वत्कीर्त्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥42॥

युद्ध में रक्षक और विजय दायक

कुंताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह-
वेगावतार-तरणातुर-योध-भीमे ।
युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्-
त्वत्-पाद-पंकज-वना-श्रयिणो लभंते ॥43॥

भयानक-जल-विपत्ति नाशक

अम्भो-निधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्र-
पाठीन-पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ ।
रंगत्तरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्-
त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद्-व्रजंति ॥44॥

सर्व भयानक रोग नाशक

उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्नाः,
शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशाः ।
त्वत्पाद-पंकज-रजोमृतदिग्ध-देहाः,
मर्त्या भवंति मकर-ध्वज-तुल्य-रूपाः ॥45॥

कारागार आदि बन्धन विनाशक

आपाद-कण्ठ-मुरुशृंखल-वेष्टितांगा,
गाढं बृहन्निगड-कोटि-निघृष्ट-जंघाः ।
त्वन्नाम-मंत्र-मनिशं मनुजाः स्मरंतः
सद्यः स्वयं विगत-बन्ध-भया भवंति ॥46॥

सर्व भय निवारक

मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि-
संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् ।
तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव,
यस्तावकं स्तव-मिमं मतिमान-धीते ॥47॥

मनोवांछित सिद्धिदायक

स्तोत्र-स्त्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्-निबद्धां
भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् ।
धत्ते जनो य इह कण्ठ-गतामजसं
तं मानतुंगमवश समुपैति लक्ष्मीः ॥48॥

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